धनुष तोड़ने पर परशुराम का क्रोध !! राम और परशुराम मिलन !! Ramayan | HD | Ramanand Sagar
सीता जी के स्वयंवर मे जब श्री राम ने शिव धनुष तोड़ा तो , शिवजी के धनुष को टूटा देख कर परशुराम प्रकट हुये और चिल्ला कर बोले – सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह मेरा शत्रु है, वह सामने आ जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मणजी मुस्कुराए और बोले हे परशुराम जी , बचपन में हमने बहुत से धनुष तोड़ डाले किन्तु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया, इसी धनुष के टूटने पर आप इतना गुस्सा क्यों कर रहे हैं ? परशुराम : हे बालक, सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या कोई छोटा मोटा धनुष समझा है। लक्ष्मणजी ने हँसकर कहा- हे देव! , हमारे समझ में तो सभी धनुष एक से ही हैं। फिर यह तो छूते ही टूट गया, इसमें रघुनाथजी का भी कोई दोष नहीं है। मुनि! आप तो बिना ही बात क्रोध कर रहे हैं? परशुरामजी अपने फरसे की ओर देखकर बोले- अरे दुष्ट! तू मुझे नहीं जानता, मैं तुझे बालक जानकर नहीं मार रहा हूँ। अरे मूर्ख! क्या तू मुझे निरा मुनि ही समझता है तूने मेरा गुस्सा नहीं देखा है जिसके लिए मैं विश्वभर में विख्यात हूँ । अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया , सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस भयानक फरसे को देख और चुप बैठ। लक्ष्मणजी हँसकर बोले- अहो, मुनीश्वर तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हो , बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हो , फूँक मारके पहाड़ उड़ाना चाहते हो । मैं तो आपको संत ज्ञानी समझकर आपकी इज्ज़त कर रहा हूँ । यह सुनकर परशुरामजी गुस्से मे बोले- हे विश्वामित्र! सुनो, यह बालक बड़ा उद्दण्ड, मूर्ख है, अभी एक मिनट में मेरे हाथों मारा जाएगा , यदि तुम इसे बचाना चाहते हो तो इसे समझा लो वरना बाद में मुझे दोष मत देना । लक्ष्मणजी ने कहा- —हे मुनि! आप अपनी शूरवीरता अनेकों बार बखान चुके हैं असली शूरवीर डींग नहीं मारा करते । बार बार ‘मार दूंगा’ कहकर मुझे डराए मत । लक्ष्मणजी के कटु वचन सुनते ही परशुरामजी ने अपने फरसे को संभाला और बोले- लोगों अब मुझे दोष न दें। यह कडुआ बोलने वाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। इसे बालक देखकर मैंने बहुत सोचा पर अब यह सचमुच मरने को उतारू हो रहा है । विश्वामित्रजी ने कहा- आप तो महा ज्ञानी हैं ,यह नादान बालक है इसका अपराध क्षमा कीजिए। परशुरामजी बोले—- यह गुरुद्रोही और अपराधी मेरे सामने उत्तर दे रहा है। फिर भी केवल तुम्हारी वजह से मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ विश्वामित्र! । नहीं तो इसे फरसे से काटकर अभी तक इसका काम तमाम कर चुका होता । विश्वामित्रजी ने मन ही मन सोचा – परशुराम जी , राम-लक्ष्मण को भी साधारण राजकुमार ही समझ रहे हैं। लक्ष्मणजी ने कहा– परशुरामजी ,आपको कभी रणधीर बलवान् वीर नहीं टकरे हैं, इसीलिए आप घर में ही शेर हैं । तब श्री रघुनाथजी ने इशारे से लक्ष्मणजी को रोक दिया । लक्ष्मणजी के कटाक्षों से, परशुरामजी के गुस्से को बढ़ते देखकर श्री रामचंद्रजी बोले – परशुराम जी ! लक्ष्मण तो नादान बालक है यदि यह आपका कुछ भी प्रभाव जानता, तो क्या यह बेसमझ आपकी बराबरी करता , आप तो गुरु समान है , उसे माफ कर दें । श्री रामचंद्रजी के वचन सुनकर वे कुछ ठंडे पड़े। इतने में लक्ष्मणजी कुछ कहकर फिर मुस्कुरा दिए। उनको हँसते देखकर परशुरामजी फिर उबल पड़े ।
via YouTube https://youtu.be/TrFEAnQymoE
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